और उनमें भी उन लोगों के लिखे इतिहास को प्रमाणिक मानते हैं जिन्होंने हम पर आक्रमण किया था, हम पर हुकूमत की, हमको गुलामी की जंजीरों में जकड़ा ।
गुप्तकाल तक भारत में स्त्रियों की दशा और जातिगत व्यवस्था बहुत उच्च कोटि पर थी, ब्रह्मणवाद जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी,
पूरे विश्व में सर्वाधिक स्त्री शासक भारत में रही, वो भी उच्च कोटि की शासिका । 
पठन-पाठन का कार्य भी पूरे विश्व में सर्वाधिक भारतीय स्त्रियों द्वारा ही किया गया ।
यही दशा सभी जातियों के लिए भी समान रूप से लागू थी, सभी जातियों के लोग महान राजा के पद तक पहुंचते थे । 
और तो और रामायण और महाभारत जैसे महाग्रंथ को लिखने वाले महर्षि वेदव्यास और महर्षि वाल्मिकी भी अनुसूचित जाति वर्ग से थे,
ये नस्लभेद, रंगभेद, दासप्रथा, स्त्रियों को घर में बंद कर के रखने वाली प्रथा सब बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा भारत में प्रसारित की गई ।
दरअसल 1000 साल की गुलामी में भारत के लोगों की मानसिकता में बल और छल के माध्यम से इतना बदलाव कर दिया गया कि हमको हमारा वास्तविक इतिहास अब बस कहानी कल्पना लगता है ।
आखिर लगेगा भी क्यों नहीं, भारतीयों द्वारा लिखे इतिहास को कभी पढ़ाया भी तो नहीं गया ।