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Monday, June 18, 2018

तनाव (Depression) से मुक्ति (भाग-2)


तनाव (Depression) की समस्या से निजात -  (भाग-2)
अवसाद एक रासायनिक बीमारी है मस्तिष्क की जो कि डेंगू, मलेरिया , टाइफाइड की ही तरह हममें से किसी को भी हो सकती है।

दुनिया में 70 प्रतिशत लोग कभी न कभी जीवनकाल में अवसाद ग्रस्त होंगे। इसलिए न तो ये शर्म का विषय है न ही किसी को उलाहना देने का।
डोपामिन, सेरोटोनिन,एवं अन्य रसायनों की मात्रा में नानोग्राम परिवर्तन और  अनुपात में गड़बड़ी की वजह से ही हमारी क्षमता बाहरी तनावों से लड़ने की बेहद कम कर हमें अवसाद का शिकार बना सकती है।

बाइपोलर डिसऑर्डर या Endogenous Depression में तो बिना किसी खास वजह के भी आत्महत्या कर लेने तक का दुख मन को महसूस हो सकता है।

इन रसायनों का सही होना हमारे मस्तिष्क में मात्र और मात्र किस्मत है। बाहरी कंट्रोल न के बराबर है। हमारा अपना योगदान नगण्य ही है। इसलिए दूसरे पर हंसिये मत न ही कोई लेबल लगाइए उन पर जिनके मस्तिष्क की कोशिकाएं इन रसायनों को नहीं बना पा रहीं।

क्या आप किसी अँधे व्यक्ति पर हंसेंगे न देख पाने के लिए ? फिर अवसाद ग्रसित व्यक्ति पर क्यों ?
नींद, व्यायाम, मैडिटेशन, जीवन को हल्के से लेना जैसे कुछ उपाय सभांवना को कम करते हैं मात्र।
अधिकतर पुरुष अवसाद होने पर , अल्कोहल लेते हैं। और ऐसा माना जाता है कि अल्कोहल दुख  को कम कर देता है। किन्तु, अल्कोहल अवसाद की अवस्था में आत्महत्या को प्रेरित करने वाला सबसे प्रमुख कारक है। अधिकांश पुरुष आत्महत्या में अल्कोहल पोस्टमॉर्टम में मिलेगा। क्योंकि अल्कोहल भावनाओं को  बढ़ा देता है। आप दुखी हैं तो और दुखी हो जाएंगे। क्रोधित हैं तो और क्रोधित हो जाएंगे। साथ ही डर खत्म कर inhibition खत्म कर देता है
जिससे व्यक्ति परिवार का क्या होगा जैसी बातों का त्याग कर ख़ुदकुशी का क़दम उठा सकता है।
सभी पुरुषों को सलाह है। अवसाद होने पर कभी अल्कोहल न लें। बेहतर तीन तरीके नीचे लिख रहा हूँ। बेहद कारगर होंगे।

1) Vigourous exercise करें।  तुरंत खूब सारे डिप्स मार लें। एक बोरी पर ढेरों मुक्के बरसा लें। 1 किलोमीटर तेज़ दौड़ लगा लें। ऐसा कुछ।
Vigorous muscle contraction और exercise से रक्त में endorphins और cortisol नामक हॉर्मोन्स का स्त्राव होता है। ये हॉरमोन स्ट्रेस से लड़ने और अच्छा फील कराने का काम करते हैं। तुरंत ही व्यक्ति तकलीफ़ें सहने, लड़ने को लेकर अधिक निडर हो जाता है। आंतरिक खुशी बाहरी दुखों की पीड़ा को बेहद कम कर देती है। इस तरह समस्या से लड़ने का समय आपको मिल जाएगा।

2) Depression तीन दिन से अधिक महसूस होने पर
Antidepressent मेडिसिन डॉक्टर से लिखवा कर रेगुलर खाएं। ये बेहद सुरक्षित होती हैं , आदत नहीं डालतीं और बेहद प्रभावी होती हैं मस्तिष्क के रसायनों को सही अनुपात में ला कर नई सोच विकसित करने में।

कुछ कॉमन antidepressant हैं
Etizolam, Escetallopram, Fluoxeitin, Sertalin.. (Dr. से सलाह लेकर खाएं)

महिलाएं भी उपरोक्त उपाय कर सकती हैं।

अवसाद के समय व्यायाम करने का ज़रा भी मन नहीं करेगा।
लेकिन आपको ये करना ही होगा।

3) अपनी समस्या से भागिए नहीं उसका सामना करिये।
अधिकतर समस्याएँ जितनी बड़ी हमारा दिमाग बना रहा होता है, उतनी बड़ी होती नहीं।

ठीक वैसे ही जैसे अंधेरे में दीवार पर आपको एक इंसानी काली, डरावनी, आकृति दिखती थी बचपन में आप डरते डरते लेटे  रहते थे।
लेकिन उसे छूते ही आप देखते हैं कि वो तो खूंटे पर लटकी एक शर्ट है।

अपनों से सलाह लीजिये।

जैसे मम्मी आ कर लाइट जला दें कमरे में तो वो आकृति तुरंत छू मंतर। और सामने शर्ट ही टंगी दिखेगी।

उपरोक्त तीन उपाय फॉलो करने , किसी अवसाद ग्रस्त मित्र, परिवारजन को प्रेरित करें।

किशोरों को भी ये बात बताएं। कि कैसे हमारा मस्तिष्क कार्य करता है।

फिर न कहना कि हम तो सोच भी न सकते थे कि 'वो ये कदम उठा लेगा।'

#क्यानकरें: किसी को अवसाद ग्रस्त होने पर उसे ख़ुश रहा कर यार, तू  खुश क्यों नहीं रहता, पॉजिटिव सोच जैसी बातें न कहें।

अवसाद में यदि कोई मनुष्य हो तो इस तरह की सलाह उसका अवसाद बढ़ाएगी। क्योंकि वह रासायनिक प्रक्रिया की वजह से यह कर सकने में अक्षम है अभी।
यह बातें उसमें Helplessness लाएगी। उसे लगेगा वो व्यर्थ है। अकेला है। कोई उसे नहीं समझता।
ठीक वैसे जैसे आप किसी अंधे को कहें तू देख न , देख कर तो देख मैं देख सकता हूँ तू भी देख।
ऐसे में वह अंधत्व का शिकार गलत होगा या आप ???

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